दूसरा दिन: 11 दिसंबर, दोपहर के 12:30 बजे, खन्नात गांव
पहला दिन:
हमने कल यानी 10 दिसंबर 2017 को सुबह 10 बजे चलना शुरू किया और पंचधारा पहुंचे जो घने जंगल के बीच में है. तीन बज रहे थे और हम सिर्फ 14 किमी चले थे, हम ऊर्जा से भरे थे लेकिन हमें कुछ खाना था और आगे जहां हमें खाना मिलता वो जगह 16 किमी. आगे थी. इसलिए हम पंचधारा में रुक गए. वहां सिर्फ हम तीन और स्वामी जी थे. उन्होंने हमें सामान दिया और हमने खाना बनाया. सचिन खाना अच्छा बनाता है. हम उसकी मदद करते रहे.
रात में तारे टिमटिमा रहे थे. हमने आग जलाई और घंटों बातें करते रहे. कई घंटों तक सन्नाटे में भी रहे. ये एक शानदार दिन था. हम तीनों सुरक्षित थे और खुश थे. रात में ठंड काफ़ी थी.
दूसरा दिन:
कैटलीना ने सुबह कॉफी बनाई जिससे हम जागे. सचिन ने जल्दी से खिचड़ी पकाई. मैंने बर्तन धोए. 8 बजे हम एक बार फिर निकल पड़े. मेरे बाएं कंधे पर अचानक दर्द शुरू हो गया. मैंने चलना जारी रखा. हमें कई घंटों तक कोई इंसान नज़र नहीं आया.
कैटलीना के पैरों में दर्द होने लगा. मैंने उसके पैरों की थोड़ी मसाज की. सचिन ने एक मीठा फल खाया जो उसके गले में फंस ही गया था. मैंने भी इसे टेस्ट किया लेकिन निगला नहीं. फल देखने में अच्छा और मीठा था लेकिन जीभ में झुनझुनाहट सी हो गई. सचिन को आखिरकार खूब सारा पानी पीकर उल्टी करनी पड़ी तब तक हम एक गांव पहुंच गए थे और खाने के नाम पर हमने समोसे खाए.
हमारे फ़ोन में नेटवर्क हैं. थोड़े अपडेट और करीबियों को फ़ोन करने का वक्त है.
दोपहर 12:30 बजे के बाद
दिन का दूसरा हिस्सा पहले वाले से ज़्यादा मजेदार रहा. खन्नात गांव से हम सात चाय पीने और 14 समोसे खाने के बाद निकले. इसके हमें कुल 100 रुपये देने पड़े. कैटलीना को फिर से पैरों में दर्द होने लगा और उसी दाईं एड़ी के पास एक छाला पड़ गया था.
उसके पंजे, एड़ियां और जांघों पर काफी दर्द था. मेरे कंधे का दर्द बार-बार आ-जा रहा था. सचिन को काफी समय तक अपनी जीभ महसूस नहीं हुई. हमें अब तक नहीं पता चला था कि आखिर वो कौन सा फल है जो हमने खाया था.
हम गांवों से गुजरे. एक शख्स ने हमें अपने घर रोकने की कोशिश भी की लेकिन हमने मना कर दिया क्योंकि हम और दूरी तय कर लेना चाहते थे. कुछ किमी. आगे जाने के बाद हम रास्ता भटक गए. सूरज ढल रहा था और किसी तरह हम एक आश्रम ढूंढ़ने में कामयाब रहे. लेकिन हमने तय किया कि हम अभी और चलेंगें उसके बाद अगली जगह पर रुकेंगे, जिसे ‘त्यागी जी का आश्रम’ कहते हैं.
हम कई घंटों तक खेतों के सहारे चलते रहे. कैटलीना ने भी घायल शेरनी की तरह हिम्मत दिखाई. वो घंटों लंगड़ाते हुए चलती रही. ये मेरे लिए प्रेरणा भी है. हम एक किसान से मिले जो आया और उसने हमारे पैर छुए. (उन्हें लगता है कि यात्री भगवान के चुने लोग होते हैं और उनके पैर छूना चाहिए.) जब उसने कैटलीना को मां कहकर पैर छुए तो वो भावुक हो गई. उस ऊर्जा के साथ वो कई घंटों चली.
जल्द ही अंधेरा घिर आया. टॉर्च जलाईं लेकिन हम 10 मीटर से आगे का कुछ नहीं देख सकते थे. हम एक बार फिर भटक गए. मैं मानसिक तौर पर इस चीज के लिए तैयार हो चुका था कि हमें रात में खुले आसमान के नीचे भूखे सोना पड़ेगा. लेकिन अंदर से उम्मीद थी कि हम रास्ता खोज लेंगे.
हमने एक छोटी नदी के दूसरी तरफ कुछ रोशनी देखी. हमने मदद के लिए आवाज़ लगाई. दूसरी तरफ से जवाब मिला ”इधर मत आओ. उत्तर की तरफ जाओ. यहां कोई घर या आश्रम नहीं हैं ना यहां खाना है.”
जल्द ही हमें कुछ आवाज़ें सुनाई दीं जो हमें वापस दूसरी तरफ जाने के लिए कह रही थीं. हमें समझ नहीं आ रहा था कि असल में कौन क्या कहना चाहता था. तभी हमें एक आवाज सुनाई दी ‘नर्मदे हर’
हम उस आवाज की तरफ बढ़े और एक शख्स से मिले. उनके साथ हमने पैदल नदी पार की. वो हमें आश्रम ले गए. (हमारी आवाज़ सुनकर वो अंधेरे में भागते हुए मदद के लिए आए. रास्ते में वो लकड़ियों से टकरा कर गिर पड़े और उन्हें चोट भी लगी.) उनकी ये लगन देख हम भावुक हो गए. वहां हम एक बाबा से मिले. अगर मैं उनसे अपनी बातचीत का जिक्र करूं तो मुझे वो लिखने में आधे घंटे और लग जाएंगे.
हमें सोने के लिए जगह मिल गई. मैंने रोटी बनाई. सचिन ने दाल. ये सबसे अच्छा तो नहीं था लेकिन ऐसा लगा जैसे हम पर कृपा बरस रही है. मैंने बाबाओं के साथ चिलम पी. इससे मुझे जो अहसास हुआ उसका यहां जिक्र ना करूं तो ही बेहतर है. हम आसमान, सितारों और चांद की मुस्कुराहट के नीचे सोए. बिल्कुल बच्चों की तरह.
नर्मदे हर!
(नर्मदा की ये यात्रा प्रोजेक्ट गो नेटिव के साथ)
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13 thoughts on “नर्मदा परिक्रमा: जब रास्ता भटके और अंधेरे में एक आवाज सुनाई दी ‘नर्मदे हर’”